Bharat America Vyapar Samjhauta: देरी से बढ़ी उलझन

संभावित ‘मिनी ट्रेड डील’ पर सस्पेंस बरकरार

भारत-अमेरिका व्यापार: 118.28 अरब डॉलर के आँकड़े
वर्ष 2023-24 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा। दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 118.28 अरब डॉलर तक पहुँचा। भारत अमेरिका को मुख्यतः फार्मा, वस्त्र, रत्न-जवाहरात और इंजीनियरिंग वस्तुएं निर्यात करता है, जबकि अमेरिका से कच्चा तेल, रक्षा उपकरण और उच्च तकनीकी सामान आयात करता है।

भारत और अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौते को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं। हालांकि, यह समझौता अभी तक आकार नहीं ले सका है। ऐसा कहा जा रहा है कि यह ‘मिनी ट्रेड डील’ केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हो सकता है, जिसमें कपड़ा उद्योग और फार्मास्यूटिकल्स जैसे मुद्दों पर भारत को कुछ हद तक झुकना पड़ सकता है। हालांकि यह कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते में दोनों पक्षों को कुछ न कुछ समझौता करना पड़ता है।

इस समय भारत के लिए अमेरिका के साथ जल्द से जल्द किसी व्यापार समझौते पर पहुंचना बहुत जरूरी है। यदि यह समझौता नहीं हो पाता है, तो भारत के लिए स्थिति जटिल हो सकती है। खासकर इसलिए, क्योंकि चीन पहले से ही भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और यदि अमेरिका से दूरी बनती है, तो चीन पर हमारी निर्भरता और भी बढ़ सकती है। यह स्थिति हमारे दीर्घकालिक हितों के लिए घातक हो सकती है, क्योंकि भारत और चीन के राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध पिछले कुछ वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं, विशेषकर गलवान घाटी की घटना के बाद से।भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा अभी भी चीन से आने वाले कच्चे माल पर निर्भर है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं को भी तभी गति मिल सकती है, जब हमें आवश्यक संसाधन समय पर और उचित मूल्य पर मिलें। चीन के विकल्प तलाशने की कोशिशें की गई हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका से व्यापार नहीं होता, तो भारत को अपने निर्यात उत्पादों के लिए अन्य देशों के बाजार तलाशने चाहिए। हालांकि, यह विचार व्यवहार में उतना आसान नहीं है, जितना सुनने में लगता है। अमेरिका एक बड़ा और स्थिर बाजार है, जिसकी भरपाई तुरंत किसी अन्य देश से नहीं की जा सकती। वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी की स्थिति में है, ऐसे में कोई भी नया बाजार तुरंत असरकारी नहीं हो पाएगा। साथ ही, नए देशों के साथ व्यापार स्थापित करना समय और संसाधनों की मांग करता है।

क्यों ज़रूरी है अमेरिका से समझौता?

*अमेरिका एक स्थिर और विशाल बाजार है।

*भारत अमेरिका को हर साल 8-10 अरब डॉलर की फार्मा वस्तुएं निर्यात करता है।

*वैश्विक मंदी के दौर में नए बाजार तलाशना जोखिम भरा है

हालांकि यह भी सच है कि अमेरिका को भी भारत की जरूरत है। व्यापार समझौता टलने का एक प्रमुख कारण यही है कि अमेरिका अपने हितों को सर्वोपरि रखना चाहता है, जबकि भारत फिलहाल उसके हर शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में, यह जरूरी है कि भारत अपने दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित और व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाए। अमेरिका के साथ समझौता न केवल आर्थिक रूप से बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम हो सकता है।

इसलिए, इस समय भारत को अत्यधिक सतर्कता और समझदारी से कदम बढ़ाने की जरूरत है, ताकि वह अपने रणनीतिक साझेदारों से मजबूत संबंध बनाए रख सके और आर्थिक मोर्चे पर संतुलन बना सके।

चीन पर निर्भरता: लगातार बढ़ती रणनीतिक चुनौती
वहीं चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा चिंताजनक है। FY 2023-24 में चीन से कुल व्यापार 136 अरब डॉलर रहा, जबकि व्यापार घाटा 85 अरब डॉलर तक पहुँच गया। भारत के विनिर्माण क्षेत्र में प्रयुक्त कच्चा माल—जैसे इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, APIs और मशीनरी—अभी भी बड़े पैमाने पर चीन से आता है।

‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाएं चीन पर निर्भरता कम करने का प्रयास हैं, लेकिन वैकल्पिक सप्लाई चेन तैयार करना आसान नहीं रहा है।

घरेलू बाजार पर भी इसका प्रतिकूल असर हो सकता है।

रुकावटें कहाँ हैं?

*अमेरिका चाहता है कि भारत डेटा लोकलाइजेशन, ई-कॉमर्स और IPR कानूनों में ढील दे।

*भारत घरेलू उद्योगों की रक्षा करना चाहता है और हर अमेरिकी शर्त को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है।