आज का भारत एक वैश्विक मंच पर केवल एक उभरती शक्ति नहीं, बल्कि रणनीतिक विवेक और संतुलन की भूमिका निभाने वाला जिम्मेदार राष्ट्र बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया विदेश यात्राएं और वैश्विक मंचों पर उनकी भागीदारी इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि भारत अब सिर्फ क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति में संतुलनकारी (balancer) भूमिका में है।

ब्रिक्स और भारत की भूमिका
ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) जैसे मंचों में भारत की भूमिका अत्यंत संतुलित रही है। जहां चीन और रूस जैसे देश मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को पूरी तरह पलटना चाहते हैं और पश्चिमी देशों के प्रभाव को चुनौती देना चाहते हैं, वहीं भारत सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाता है। भारत यह मानता है कि मौजूदा व्यवस्था में आंतरिक सुधारों की आवश्यकता है, लेकिन पूरी व्यवस्था को खारिज करना व्यावहारिक नहीं है। यही कारण है कि ब्रिक्स समिट में भारत की भूमिका अक्सर ‘सावधानी के चश्मे’ से देखी जाती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस समिट में एक कुशल राजनेता की भूमिका निभाई। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की गैरमौजूदगी के बावजूद मोदी का प्रभाव इसलिए भी ज्यादा रहा क्योंकि उन्होंने ब्रिक्स को एकजुट करने की कोशिश की। भारत वैश्विक ध्रुवीकरण के इस दौर में एक ऐसा पुल बन रहा है, जो न तो पूरी तरह पश्चिम का समर्थक है, न ही पूर्व का विरोधी। यह मध्यस्थता की वह भूमिका है, जो भारत को एक शांतिपूर्ण, सहयोगात्मक और संतुलित वैश्विक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है।

ग्लोबल साउथ में भारत का प्रभाव
ग्लोबल साउथ यानी वे विकासशील देश जो अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में फैले हुए हैं — उनमें भारत की भूमिका एक स्वाभाविक नेता के रूप में उभर रही है। इनमें से अधिकतर देशों की समस्याएं भारत जैसी हैं — गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, जलवायु संकट आदि। भारत की विदेश नीति में भारतीय मूल के समुदाय (डायस्पोरा) को एक बड़े उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।

ग्लोबल साउथ के कई देशों में भारतीय मूल की आबादी महत्वपूर्ण प्रतिशत में है — जैसे त्रिनिदाद और टोबेगो, फिजी, घाना, मॉरीशस, सूरीनाम आदि। मोदी सरकार ने इन समुदायों से प्रतीकात्मक और नीतिगत दोनों रूपों से जुड़ाव बढ़ाया है। ‘डायस्पोरा फर्स्ट’ की नीति ने विदेशों में बसे भारतीयों को देश के हितों से जोड़ने का काम किया है। इससे न केवल राजनयिक संपर्क मजबूत हुए हैं, बल्कि वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज को समर्थन भी मिला है।

मोदी द्वारा चुने गए देशों का दौरा केवल औपचारिकता नहीं थी, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से किया गया चयन था। कई देशों में दशकों से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था — जैसे अर्जेंटीना में 57 वर्ष और घाना में 30 वर्षों से कोई दौरा नहीं हुआ था। जबकि चीन पहले ही इन देशों में भारी निवेश कर अपने प्रभाव को बढ़ा चुका है। हालांकि भारत चीन की आर्थिक शक्ति की बराबरी नहीं कर सकता, लेकिन वह एक ऐसा विकल्प प्रस्तुत कर सकता है, जो टिकाऊ हो, विश्वसनीय हो, और जिसमें कोई छिपा एजेंडा न हो। भारत बिना किसी शर्त के मित्रता की बात करता है — न कि वफादारी खरीदने की।

विकासशील देशों का नेतृत्वकर्ता भारत
ग्लोबल साउथ अब केवल संघर्षशील या पिछड़े देशों का समूह नहीं रहा है। ये देश युवा जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों और संभावनाओं से परिपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषणों में यह बार-बार दोहराया है कि अब इन देशों को एक संगठित आवाज की जरूरत है — और भारत इस नेतृत्व को देने के लिए तैयार है।

चाहे वह जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां हों, वैश्विक कर्ज संकट हो, या आतंकवाद का मुकाबला — भारत ने बार-बार वैश्विक मंचों पर इन मुद्दों पर विकासशील देशों की तरफ से आवाज उठाई है। जी-20, ब्रिक्स, क्वाड, और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की भागीदारी इसका प्रमाण है।

भारत की नीति न तो टकराव की है और न ही संकीर्ण राष्ट्रवाद की। यह एक वैश्विक मानवतावादी दृष्टिकोण है, जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भारतीय सोच को विश्व में प्रसारित करता है।
भारत आज एक ऐसी स्थिति में है, जहां वह न केवल अपनी घरेलू आवश्यकताओं को देखते हुए वैश्विक मंचों पर भाग ले रहा है, बल्कि वैश्विक संतुलन और सहयोग का मार्ग भी प्रशस्त कर रहा है। ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ जैसे मंचों में भारत की भूमिका न केवल रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि वह एक नैतिक नेता के रूप में भी उभर रहा है — जो विकास, समावेशिता और सहयोग की बात करता है।

विश्व में जब एक ओर शक्तियों का ध्रुवीकरण हो रहा है, ऐसे में भारत का यह संतुलित, सुधारवादी और सहयोगात्मक दृष्टिकोण न केवल विकासशील देशों को नेतृत्व प्रदान कर रहा है, बल्कि एक नई विश्व व्यवस्था के निर्माण की नींव भी रख रहा है — जिसमें सभी की भागीदारी हो, न कि किसी एक शक्ति का वर्चस्व।